आज हम बात करने वाले हैं गर्ल चाइल्ड के बारे में । हर साल 11 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय गर्ल चाइल्ड डे मनाया जाता हैं पर क्या इससे लड़कियों की स्थिति में कोई सुधार हुआ है ? ये एक चिंता का विषय आज भी बना हुआ हैं । आप सभी तो जानते ही हैं कि हमारे समाज मे लड़कियों की क्या स्थिति हैं । उनके जन्म और शिक्षा को लेकर आज भी बहुत सवाल है सबके मन मे । भारत मे लड़कों की प्राथमिकता बहुत सारी लड़कियों के जन्म लेने के अधिकार को छीन लेती हैं ।प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण और बालिका भ्रूण हत्या पर कानूनी प्रतिबंध के बावजूद, भारतीय समाज के संपन्न और गरीब दोनों वर्गों में यह प्रथा आम है। लड़कियों की हत्या गर्भ में कर दी जाती हैं या शैशवावस्था में जाते ही उन्हें छोड़ दिया जाता हैं । 2011 की एक खोज के अनुसार, 11 मिलियन छोड़े हुए बच्चों में से 90% लड़कियां हैं। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत मे कन्या भ्रूण हत्या के कारण लगभग 5 करोड़ लड़किया औऱ महिलाएं गायब हैं । विश्व के अधिकतर देशो में प्रति 100 पुरुष के पीछे 105 महिलाएं होती हैं पर भारत मे ऐसा नही है यहाँ प्रति 100 पुरुष कब पीछे 93 ही महिलाएं हैं । संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत मे अवैध रूप से अनुमानित तौर पर 2000 अजन्मी कन्याओं का गर्भपात किया जाता हैं इसलिए पुरूष की तुलना में यहाँ महिलाओं की संख्या कम है ।
लड़कियों की शिक्षा दर भी भारत मे कुछ खास अच्छी नहीं हैं ।सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम बेसलाइन सर्वे 2014 की रिपोर्ट के अनुसार 15 से 17 साल की लगभग 16 प्रतिशत लड़कियां स्कूल बीच में ही छोड़ देती हैं । कभी कभी बाल विवाह और स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था न होने के कारण भी लड़कियो को स्कूली शिक्षा से दूर रखा जाता हैं । भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार, 53% घरों और 11% स्कूलों में शौचालय नहीं थे। सुरक्षा की यह कमी युवा लड़कियों को खुद को शिक्षित करने और अपने जीवन को बेहतर बनाने के अवसर से वंचित करती देेती हैं ।
इसके अलावा दहेज प्रथा औऱ यौनशोषण भी एक अहम मुद्दा हैं जिससे लोग लड़कियों को जन्म देने से पीछे हट जाते हैं । इसके अलावा कभी जातिवाद औऱ कभी धर्म के नाम पर भी लोग लड़कियों की हत्या कर देते हैं ।
ऐसा नही की सरकार इसके लिए कोई कदम नही उठाई हैं ।अंतर राष्ट्रीय बालिका दिवस का यही उपदेश्य हैं :-
लड़कियों के साथ होने वाली असमानताओं को उजागर करना
बालिकाओं के अधिकारों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना
बालिका शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण के महत्व पर जागरूकता पैदा करना । सरकार के ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ कार्यक्रम का उद्देश्य भी बालिकाओं को जीवन रक्षा, सुरक्षा और शिक्षा प्रदान करना है। ऐसे औऱ भी बहुत सारे कार्यक्रम बने हैं जो लड़कियों के लिए हैं ।
इतने सारे कार्यकम लड़कियों के लिए बने होते हुए भी आज हमारे देश मे लड़कियों की यही स्थिति हैं । उनके लिए अभी भी समाज मे असमानता देखने को मिलती हैं । बालिकाओं को सशक्त बनाने के लिए शक्तिशाली आंकड़ों, परिवार के सदस्यों, शिक्षकों और बुजुर्गों की मानसिकता को मौलिक रूप से बदलना आवश्यक हैं।
डॉ. सुनंदा इनामदार कहती हैं कि भारत में लडकियों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर जोर देना ज्यादा जरूरी है उनके अनुसार, शिक्षा सहित लड़कियों के अन्य मुद्दों पर भी समाज को जागरूक करना होगा , खासतौर पर ग्रामीण समाज को । यूनिसेफ की गुडविल एंबेसडर एवं फिल्म अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा का कहना है कि जब तक लोग लड़के और लड़की में भेदभाव खत्म नहीं करेंगे तब तक इस स्थिति में बदलाव नहीं आएगा ।। तो आइए :-
“सोच बदले ताकि ये दुनिया बदले”
धन्यवाद 🙏
– जयाबाला कुशवाहा